1 March 2022

8301 - 8305 सब्र क़दर मोहब्बत चाहत शक्ल शराब नियत ज़ज़्बात शायरी

 

8301
रुक़ सक़ें क़िसीक़े लिए,
इतना सब्र क़िसे हैं...
नीचे दिख़ाक़र ख़ुद ऊपर उठना हैं,
यहाँ ज़ज़्बातोंक़ी क़दर क़िसे हैं.......

8302
आदमीक़ी शक्लमें,
फ़िरते हैं वीराने यहाँ...
अपने क़ाँधोंपर उठाए,
मय्यतें ज़ज़्बातक़ी.......

8303
क़हाँपर क़्या हारना हैं,
ये ज़ज़्बात ज़िसक़े अंदर हैं...!
चाहें दुनिया फ़क़िर समझे,
फ़िर भी वो हीं सिक़ंदर हैं...!!!

8304
शराब एक़ नाम हैं,
बिक़ने तलक़...
बिक़ ज़ाये ज़ब,
ज़ज़्बात क़हलाती हैं...!

8305
देख़ो ख़ुलूँस-ए-नियत,
ज़ज़्बात और मोहब्बत...
मत चाहतोंक़ो तोलो,
सौग़ातक़े मुताबिक़.......
                  इफ़्तिख़ार राग़िब

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