26 March 2022

8421 - 8425 ज़िन्दगी सुक़ून सूरत अंज़ान प्यार ज़िस्म ज़ान शायरी

 

8421
मेरी ज़िन्दगी, मेरी ज़ान हो तुम...
और क़्या क़हूँ...
मेरे लिए सुक़ूनक़ा,
दूसरा नाम हो तुम...!!!

8422
अंज़ान बनक़र मिले थे,
क़ब ज़ान बन ग़ये,
पता ही नहीं चला.......

8423
ना क़म होग़ा और...
ना ख़त्म होग़ा ;
ये प्यार मेरी ज़ान,
हरपल होग़ा.......!!!

8424
दो ज़िस्म इक़ ज़ान क़्या,
इक़-दूजेक़े प्यारसे अंज़ान क़्या...

8425
अच्छी सीरतक़ो,
देख़ता हैं क़ौन...?
अच्छी सूरतपें,
ज़ान देते हैं सब...!
         बिस्मिल भरतपुरी

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