13 March 2022

8356 - 8360 रिश्ता फ़ितरत इश्क़ इलाज़ ज़िंदगी तड़प इलाज़ रूह शायरी

 

8356
रूहक़े रिश्तोंक़ी,
यहीं खूबी हैं...
महसूस हो हीं ज़ाती हैं,
क़ुछ बातें अनक़हीं.......

8357
शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं,
ज़ब फ़िक़्र फ़रमाता हूँ मैं...!
रूह बनक़र ज़र्रे ज़र्रेमें,
समा ज़ाता हूँ मैं.......!!!

8358
मेरी रूह ग़ुलाम हो ग़ई हैं,
तेरे इश्क़में शायद...
वरना यूँ छटपटाना,
मेरी आदत तो ना थी.......

8359
रूहक़ी तडपक़ा,
इलाज़ हो तुम...
और ज़िंदगी हमसे पूछो,
सनम क़ितनी लाज़वाब हो तुम...

8360
रूहक़ी तड़पक़ा,
इलाज़ हो तुम...
क़ौन क़हता हैं,
मोहब्बत लाइलाज़ बीमारी हैं...?

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