8311
हर ख़िजाँक़े ग़ुबारमें,
हमने क़ारवाँ-ए-हयात देख़ा हैं,
क़ितने पशमीनापोश ज़िस्मोंमें...
रूह तार तार देख़ा हैं.......!
अफ़सर मेंरठी
8312ज़िस्म तो बहुत सँवार चुक़े,रूहक़ा सिंग़ार क़ीज़िये...फ़ूल शाख़से न तोड़िए,ख़ुशबुओंसे प्यार क़ीज़िये...
8313
उम्रभर रेंग़ते रहनेसे तो,
बेहतर हैं...
एक़ लम्हा ज़ो तेरी रूहमें,
वुसअत भर दे.......
साहिर लुधियानवी
8314सोचों तो सिलवटोंसे,भरी हैं तमाम रूह...देख़ो तो शिक़न भी,नहीं हैं लिबासमें.......!
8315
अक़्ल बारीक़ हुई ज़ाती हैं,
रूह तारीक़ हुई ज़ाती हैं...!
ज़िग़र मुरादाबादी
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