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न ज़िस्म पिघलता हैं,
न रूह तबाह होती हैं,
दिलोंक़े टूटनेक़ी क़हीं,
क़ोई आवाज़ नहीं होती...
8337यक़ीनन तुमने रूहतक़,दस्तक़ दी होगी...सुना हैं, दिलतक़ दस्तक़ देनेवाले,दर्द बहुत देते हैं.......
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नाख़ून अल्फ़ाज़ोंक़े,
रोज़ पैने क़रता हूँ...
ज़ख़्म रूहक़े सूख़ें,
अच्छे नहीं लग़ते...
8339ज़िस्मसे होनेवाली मोहब्बत,आसान होती हैं...!और रूहसे हुई मोहब्बतक़ो समझनेमें.ज़िंदग़ी ग़ुज़र ज़ाती हैं.......!!!
प्यास इतनी हैं,
मेरी रूहक़ी ग़हराईमें...
अश्क़ ग़िरता हैं तो,
दामनक़ो ज़ला देता हैं...