Showing posts with label ग़ैर ख़ता फ़िक्र लफ़्ज़ क़ाफ़िर तूफ़ान मोहब्बत शिद्दत ज़ज़्बात शायरी. Show all posts
Showing posts with label ग़ैर ख़ता फ़िक्र लफ़्ज़ क़ाफ़िर तूफ़ान मोहब्बत शिद्दत ज़ज़्बात शायरी. Show all posts

1 March 2022

8296 - 8300 ग़ैर ख़ता फ़िक्र लफ़्ज़ क़ाफ़िर तूफ़ान मोहब्बत शिद्दत ज़ज़्बात शायरी

 

8296
ज़ो ग़ैरक़े ज़ज़्बातक़ी,
ताज़ीम क़रेग़ा...
वो अपनी ख़ताओंक़ो भी,
तस्लीम क़रेग़ा.......
                 मंज़ु क़छावा अना

8297
फ़क़त लफ़्ज़ोंक़ा तमाशा हैं,
ये ज़हाँ क़ाफ़िर ;
ज़ज़्बात तो ख़ामोशीमें भी,
बयाँ हो ज़ाते हैं ll

8298
हर तरहक़े ज़ज़्बातक़ा,
ऐलान हैं आँखें...!
शबनम क़भी शोला,
क़भी तूफ़ान हैं आँख़ें...!!!
                 साहिर लुधियानवी

8299
ज़ज़्बात ज़ो मेंरे क़भी,
समझ सक़ी हीं नहीं...
मैं क़ह दूँ क़ैसे,
क़ल फ़िक्र होग़ी उसक़ो मेरी...

8300
ऐसा नहीं क़ि उनसे,
मोहब्बत नहीं रहीं...
ज़ज़्बातमें वो पहलीसी,
शिद्दत नहीं रहीं.......
                  ख़ुमार बाराबंक़वी