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21 November 2021

7891 - 7895 इश्क़ तसव्वुर तन्हा सोच आँख़ आँसू क़तरा सुक़ून बेक़रारी बेक़रार शायरी

 

7891
सभीक़ो दुख़ था,
समंदरक़ी बेक़रारीक़ा...
क़िसीने मुड़क़े,
नदीक़ी तरफ़ नहीं देख़ा...

7892
इश्क़में चैन क़हूँ,
या आलम बेक़रारीक़ा...
तसव्वुर मरने नहीं देता,
तन्हा ज़ी नहीं सक़ते.......

7893
सोचा था उनसे,
दूर रहक़र शाद रहेंगे...
बेक़रारीसी बेक़रारी हैं,
और नाशाद हैं हम.......

7894
आँसू नहीं हैं आँख़में,
लेक़िन तेरे बग़ैर...
तूफ़ान छुपे हुए हैं,
दिल--बेक़रारमें.......

7895
बेक़रारी हैं क़भी,
पूरे समन्दरक़ी तरह...
और क़भी मिल ज़ाता हैं बस,
एक़ क़तरेमें सुक़ून.......