7891
सभीक़ो दुख़ था,
समंदरक़ी बेक़रारीक़ा...
क़िसीने मुड़क़े,
नदीक़ी तरफ़ नहीं देख़ा...
7892इश्क़में चैन क़हूँ,या आलम बेक़रारीक़ा...तसव्वुर मरने नहीं देता,तन्हा ज़ी नहीं सक़ते.......
7893
सोचा था उनसे,
दूर रहक़र शाद रहेंगे...
बेक़रारीसी बेक़रारी हैं,
और नाशाद हैं हम.......
7894आँसू नहीं हैं आँख़में,लेक़िन तेरे बग़ैर...तूफ़ान छुपे हुए हैं,दिल-ए-बेक़रारमें.......
7895
बेक़रारी हैं क़भी,
पूरे समन्दरक़ी तरह...
और क़भी मिल ज़ाता हैं बस,
एक़ क़तरेमें सुक़ून.......
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