7881
क़ैफ़ियत ये बेक़रारीक़ी हैं,
अब हमक़ो अज़ीज़...
ये ख़ुमारी टूट ज़ाए तो,
बिख़र ज़ाएँगे हम.......
7882फ़िक्र-ए-बेक़रारीमें,यूँ क़ाग़ज़ रहे सुर्ख़ होते lक़लम चलती रहीं और,मसाइल हलाक़ होते चले ग़ए ll
7883
वहीं शामक़ी परछाइयाँ,
दिलपें ग़मक़ी रानाइयाँ...
तक़ते बेक़रारीसे राहें,
मुझे घेरे हैं तन्हाइयाँ.......
7884बेक़रारी दिले-बीमारक़ी,अल्ला-अल्ला...फ़र्शेग़ुल पर भी न आना था,न आराम आया.......
7885
बेक़रारी इश्क़क़ी हैं,
ज़ाते ज़ाते ज़ाएग़ी...
सब्र आएग़ा तो,
ऐ दिल आते आते आएग़ा...!
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