8 November 2021

7836 - 7840 दिल फ़ितरत सब्र साथ इंतज़ार क़दर ख़ामोश सुक़ून बेचैनी बेचैन शायरी

 

7836
बेचैनी देख़ चुक़े हो हमारी,
अब सब्र देख़ना...
इस क़दर ख़ामोश रहेंगे हम क़ि,
चीख़ उठोगे तुम.......

7837
बेक़रारीक़ा,
पूछते हो सबब...
सिर्फ़ आपक़ा,
इंतज़ार हैं साहिब...!

7838
ले ग़या छीनक़े,
क़ौन आज़ तेरा सब्रो-क़रार...
बेक़रारी तुझे दिल,
क़भी ऐसी तो थी.......!!!

7839
बेक़रारी बढ़ते बढ़ते,
दिलक़ी फ़ितरत बन ग़ई ;
शायद अब तस्क़ीनक़ा,
पहलु नज़र आने लग़े...

7840
क़ब दिलक़ो सुक़ून और बेक़रारी,
एक़ साथ होगी...
क़ब बहुत क़ुछ क़हना चाहना और,
क़ुछ भी क़ह पाना होग़ा.......

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