7831
हाल-ए-दिलसे,
बड़े बेचैन लग़ते हैं ज़नाब...
क़हीं पेशानीपर सिक़नक़ी,
वज़ह मैं तो नहीं.......
7832हर मौज़ थी बेचैन,बहक़नेक़ो क़भीसे...ख़ुद आप ही दरियामें,नहाने नहीं उतरे.......गिरिज़ा व्यास
7833
मौत खींचक़े लाई थी,
तेरे क़ूचेमें...
बेचैन रूहोंक़ो तेरे दरपर,
आक़े पनाह मिली.......
7834दिलक़ो ख़ुदाक़ी,यादतले भी दबा चुक़ा...क़म-बख़्त फ़िर भी,चैन न पाए तो क़्या क़रूँ...?हफ़ीज़ ज़ालंधरी
7835
बेचैन रूहोंक़ो,
क़भी देखा हैं l
मरक़े भी साँस,
क़ैसे लेती हैं...?
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