7846
फ़िर क़ुछ इस दिलक़ो बेक़रारी हैं,
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-क़ारी हैं l
फ़िर ज़िग़र ख़ोदने लग़ा नाख़ून,
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाक़ारी हैं ll
मिर्ज़ा ग़ालिब
7847रातभर बेक़रारीक़ी सबब,बनी ज़ो सनसनाहट...वो सिर्फ़ हवाक़े झोंके थे,यादोंक़े आँगनमें.......
7848
क़ौल आबरूक़ा था,
क़ि न ज़ाऊँग़ा उस ग़ली...
होक़रक़े बेक़रार देख़ो,
आज़ फ़िर ग़या.......
आबरू शाह मुबारक़
7849ज़ो चराग़ सारे बुझा चुक़े,उन्हें इंतिज़ार क़हाँ रहा...ये सुक़ूँक़ा दौर-ए-शदीद हैं,क़ोई बेक़रार क़हाँ रहा.......अदा ज़ाफ़री
7850
हो ग़ए नाम-ए-बुताँ,
सुनते ही मोमिन बेक़रार...
हम न क़हते थे क़ि,
हज़रत पारसा क़हनेक़ो हैं...?
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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