11 November 2021

7846 - 7850 दिल ज़ख़्म ज़िग़र चराग़ सुक़ूँ आबरू याद बेक़रारी बेक़रार शायरी

 

7846
फ़िर क़ुछ इस दिलक़ो बेक़रारी हैं,
सीना ज़ोया--ज़ख़्म--क़ारी हैं l
फ़िर ज़िग़र ख़ोदने लग़ा नाख़ून,
आमद--फ़स्ल--लालाक़ारी हैं ll
                                   मिर्ज़ा ग़ालिब

7847
रातभर बेक़रारीक़ी सबब,
बनी ज़ो सनसनाहट...
वो सिर्फ़ हवाक़े झोंके थे,
यादोंक़े आँगनमें.......

7848
क़ौल आबरूक़ा था,
क़ि ज़ाऊँग़ा उस ग़ली...
होक़रक़े बेक़रार देख़ो,
आज़ फ़िर ग़या.......
                     आबरू शाह मुबारक़

7849
ज़ो चराग़ सारे बुझा चुक़े,
उन्हें इंतिज़ार क़हाँ रहा...
ये सुक़ूँक़ा दौर--शदीद हैं,
क़ोई बेक़रार क़हाँ रहा.......
अदा ज़ाफ़री

7850
हो ग़ए नाम--बुताँ,
सुनते ही मोमिन बेक़रार...
हम क़हते थे क़ि,
हज़रत पारसा क़हनेक़ो हैं...?
                    मोमिन ख़ाँ मोमिन

No comments:

Post a Comment