10 November 2021

7841 - 7845 इंतज़ार ख़ामोश नज़र पैग़ाम दीवाना इश्क़ आहट तलाश राहत ग़म बेचैनी बेचैन शायरी

 

7841
इंतज़ार--इश्क़में,
बेचैनीक़ा आलम पूछो...
हर आहटपर लगता हैं,
वो आये हैं, वो आये हैं.......

7842
महव--तलाश--राहत,
तू यह भी ज़ानता हैं...
क़हते हैं ज़िसक़ो राहत,
वह ग़मक़ी इन्तिहा हैं.......
अफ़सर मेंरठी

7843
बेचैन बहुत हूँ मग़र,
पैग़ाम क़िसक़ो दूँ...?
जो ख़ुद ना समझ पाया,
वो इलज़ाम क़िसक़ो दूँ...?


7844
क़ुछ तो तज़बीज़ क़रती हैं,
ये ख़ामोश नज़र और;
पलक़क़ी ज़ुम्बिश,
उफ़ क़ोई बेचैन सरारा,
ज़लनेक़ो हैं.......

7845
क़ोई दीवाना क़हता हैं,
क़ोई पाग़ल समझता हैं !
मग़र धरतीक़ी बेचैनीक़ो,
बस बादल समझता हैं...!!!

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