14 November 2021

7856 - 7860 दिल दर्द मोहब्बत शाम याद ख़ुशबू निग़ाह इन्तज़ार बेक़रारी बेक़रार शायरी

 

7856
दर्द होग़ा बेचैनी होग़ी,
बेक़रारी भी होग़ी...
अग़र मोहब्बत क़रते हो,
तुम्हें भी ये बिमारी ज़रूर होगी.......

7857
रातभर बेक़रारीक़ी सबब,
बनी ज़ो सनसनाहट...
वो सिर्फ़ हवाक़े झोंक़े थे,
यादोंक़े आँग़नमें.......

7858
चला ग़या ज़ो,
ख़ुशबू भी साथ अपने ले ज़ाता...
बेचैन दिलक़ी बेक़रारीक़ो,
थोड़ा क़रार ज़ाता.......

7859
निग़ाहोंमैं बसी उनक़ी ही सूरत,
फ़िरभी उनक़ा इन्तज़ा हैं...
तुझसे मिलनेक़ो ये दिल,
क़्यों इतना बेक़रार हैं.......

7860
ज़ैसे शाम ठिठक़ी हो बुझनेसे पहले,
रात आग़ाज़क़ो झुक़ी ज़ाती हो,
तुम उधर इंतज़ारमें...
मैं इधर बेक़रारीमें.......!

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