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19 November 2021

7881 - 7885 क़ैफ़ियत दिल इश्क़ ग़म तन्हाइयाँ सब्र फ़िक्र बेक़रारी बेक़रार शायरी

 

7881
क़ैफ़ियत ये बेक़रारीक़ी हैं,
अब हमक़ो अज़ीज़...
ये ख़ुमारी टूट ज़ाए तो,
बिख़र ज़ाएँगे हम.......

7882
फ़िक्र--बेक़रारीमें,
यूँ क़ाग़ज़ रहे सुर्ख़ होते l
क़लम चलती रहीं और,
मसाइल हलाक़ होते चले ग़ए ll

7883
वहीं शामक़ी परछाइयाँ,
दिलपें ग़मक़ी रानाइयाँ...
तक़ते बेक़रारीसे राहें,
मुझे घेरे हैं तन्हाइयाँ.......

7884
बेक़रारी दिले-बीमारक़ी,
अल्ला-अल्ला...
फ़र्शेग़ुल पर भी आना था,
आराम आया.......

7885
बेक़रारी इश्क़क़ी हैं,
ज़ाते ज़ाते ज़ाएग़ी...
सब्र आएग़ा तो,
दिल आते आते आएग़ा...!