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23 December 2017

2111 -2115 इश्क़ मुहोब्बत वक्त बारिश बरस आँख करिश्मा बहक तकलीफ आशिक़ नफरत चाँद समझ शायरी


2111
"मत गुजरना रमजानके वक्त,
किसी मस्जिदके पाससे ,
लोग तुम्हें चाँद समझकर...
कहीं रोजा न तोड दे..."

2112
बारिशे तो तेरे बिन भी,
होती हैं मेरे शहरमें, पर...
उन बारिशोमें सिर्फ,
पानी बरसता हैं इश्क़ नहीं....

2113
आँखोंमें तेरी,
कोई करिश्मा ज़रूर हैं l
तू जिसको देखले...
वो बहकता ज़रूर हैं...!!!

2114
जो इश्क़ तकलीफ न दे,
वो इश्क़ कैसा;
और जो इश्क़में तकलीफ न सहे,
वो आशिक़ कैसा.......

2115
ज्यादा कुछ नहीं बदला,
उनके और मेरे बीच,
पहेले नफरत नहीं थी,
अब मुहोब्बत नहीं हैं l