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29 January 2022

8151 - 8155 इश्क़ मोहब्बत दर्द आवारगी गलती आशिक़ ज़हाँ सज़दा ज़िंदगी महसूस बदनाम शायरी


8151
गलती मनचले,
आशिक़ों क़ी थी...
बदनामी सारे ज़हाँमें,
इश्क़क़ी हुई.......

8152
मुझे देख़क़र नजरें झुक़ाना,
और यूँ मुस्क़ुरा देना...
मुझे बदनाम ही क़र देगा,
तेरा मेरे घर आना.......

8153
हमारी आवारगीक़ो,
यूँ तो बदनाम क़रो...
निक़लते थे तेरी गलीसे तो,
चोख़टक़ो तेरी सज़दा क़रक़े.......

8154
साथी अगर सही हो तो,
हर मुश्क़िल पार होती हैं l
वरना ज़िंदगी तो भीतर से ही,
बदनाम सी महसूस होती हैं ll

8155
मोहब्बत तो ज़ीनेक़ा नाम हैं,
मोहब्बत तो यूँ ही बदनाम हैं...
एक़ बार मोहब्बत क़रक़े तो देख़ो,
मोहब्बत हर दर्द पिनेक़ा नाम हैं...!