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उजाला तो हुआ कुछ देरको,
सहने-गुलिस्ताँमें...
बलासे फूँक डाला बिजलियोंने,
आशियाँ मेरा...
मिर्जा गालिब
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चाँदपर अब कुछ
नहीं पाओगे,
गढ्ढोंके
सिवा...
छोड आया हूँ
मै कबका,
वो पुराना आशियाँ.......
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सब बाँध चुके कबके,
सरे-शाख नशेमन...
हम हैं कि गुलिस्ताँकी,
हवा देख रहे हैं.......
जलील मनिकपुरी
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बिजली गिरेगी,
सेहन-ए-चमनमें
कहाँ कहाँ...
किस शाख़-ए-गुलिस्ताँपें,
मिरा आशियाँ नहीं.......
सलाम संदेलवी
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इधर सैयाद फिरते थे,
उधर सैयाद फिरते थे,
कुछ अंदाजसे मेरे,
गुलिस्ताँमें बहार आई...!
जगन्नाथ
आजाद