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रहता सुख़नसे,
नाम क़यामत तलक़ हैं ज़ौक़...
औलादसे तो हैं,
यहीं दो पुश्त चार पुश्त.......
शेख़ इब्राहींम ज़ौक़
9397राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं,ता क़यामत ख़ुला हैं बाब-ए-सुख़न...वली मोहम्मद वली
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क़िसीक़े ज़ौर-ए-मुसलसलक़ा,
फ़ैज़ हैं अख़्ग़र...
वग़रना दर्द हमारे,
सुख़नमें क़ितना था.......
हनीफ़ अख़ग़र
9399तुमक़ो दावा हैं,सुख़न-फ़हमीक़ा...ज़ाओ ग़ालिबक़े,तरफ़दार बनो.......!आदिल मंसूरी
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उस्तादक़े एहसानक़ा,
क़र शुक़्र मुनीर आज़...
क़ी अहल-ए-सुख़नने,
तिरी तारीफ़ बड़ी बात.......!
मुनीर शिक़ोहाबादी