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11 June 2023

9551 - 9555 क़िस्मत दस्तूर बज़्म मुसल्लत ख़ामुशी शायरी

 
9551
ये पानी ख़ामुशीसे,
बह रहा हैं...
इसे देख़ें क़ि,
इसमें डूब ज़ाएं.......
           अहमद मुश्ताक़

9552
ज़ोर क़िस्मतपें,
चल नहीं सक़ता...
ख़ामुशी इख़्तियार,
क़रता हूँ.......ll
अज़ीज़ हैंदराबादी

9553
तमाम शहरपें,
इक़ ख़ामुशी मुसल्लत हैं l
अब ऐसा क़र क़ि,
क़िसी दिन मिरी ज़बाँसे निक़ल ll
                               अभिषेक़ शुक्ला

9554
निक़ाले गए इसक़े,
मअ'नी हज़ार...
अज़ब चीज़ थी,
इक़ मिरी ख़ामुशी.......
ख़लील-उर-रहमान आज़मी

9555
ज़ब ख़ामुशी हीं,
बज़्मक़ा दस्तूर हो गई...
मैं आदमीसे,
नक़्श--दीवार बन गया...
                      ज़हींर क़ाश्मीरी