9551
ये पानी ख़ामुशीसे,
बह रहा हैं...
इसे देख़ें क़ि,
इसमें डूब ज़ाएं.......
अहमद मुश्ताक़
9552ज़ोर क़िस्मतपें,चल नहीं सक़ता...ख़ामुशी इख़्तियार,क़रता हूँ.......llअज़ीज़ हैंदराबादी
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तमाम शहरपें,
इक़ ख़ामुशी मुसल्लत हैं l
अब ऐसा क़र क़ि,
क़िसी दिन मिरी ज़बाँसे निक़ल ll
अभिषेक़ शुक्ला
9554निक़ाले गए इसक़े,मअ'नी हज़ार...अज़ब चीज़ थी,इक़ मिरी ख़ामुशी.......ख़लील-उर-रहमान आज़मी
9555
ज़ब ख़ामुशी हीं,
बज़्मक़ा दस्तूर हो गई...
मैं आदमीसे,
नक़्श-ब-दीवार बन गया...
ज़हींर क़ाश्मीरी
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