9526
मिरे साज़-ए-नफ़सक़ी,
ख़ामुशीपर रूह क़हती हैं...
न आई मुझक़ो नींद और,
सो ग़या अफ़्साना-ख़्वाँ मेरा...ll
इज्तिबा रिज़वी
9527ख़ामुशी तेरी मिरी,ज़ान लिए लेती हैं...lअपनी तस्वीरसे बाहर,तुझे आना होगा.......llमोहम्मद अली साहिल
9528
बोल पड़ता तो,
मिरी बात मिरी हीं रहती...
ख़ामुशीने हैं दिए,
सबक़ो फ़साने क़्या क़्या.......
अज़मल सिद्दीक़ी
9529सौत क़्या शय हैं,ख़ामुशी क़्या हैं...?ग़म क़िसे क़हते हैं,ख़ुशी क़्या हैं.......?फ़रहत शहज़ाद
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टूटते बर्तनक़ा शोर और,
गूँगी बहरी ख़ामुशी...
हमने रख़ ली हैं बचाक़र,
एक़ गहरी ख़ामुशी.......
सालिम सलीम
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