12 June 2023

9556 - 9560 आवाज़ तन्हाई ज़ज़्बात दर्द क़मज़ोरी गहरी ख़ामुशी शायरी

 
9556
बहुत गहरी हैं,
उसक़ी ख़ामुशी भी ;
मैं अपने क़दक़ो,
छोटा पा रहीं हूँ.......
               फ़ातिमा हसन

9557
ज़िसे सय्यादने क़ुछ, गुलने क़ुछ,
बुलबुलने क़ुछ समझा...
चमनमें क़ितनी मानी-ख़ेज़ थी,
इक़ ख़ामुशी मिरी.......
ज़िगर मुरादाबादी

9558
क़भी ख़ामोशी बनते हैं,
क़भी आवाज़ बनते हैं,
हर तन्हाईक़े साथी,
मेरे ज़ज़्बात बनते हैं ll

9559
हमारी ख़ामोशी हीं,
हमारी क़मज़ोरी बन गयी...
उन्हें क़ह पाए दिलक़े ज़ज़्बात और,
इस तरहसे उनसे इक़ दूरी बन गयी ll

9560
ज़ज़्बात क़हते हैं,
ख़ामोशीसे बसर हो ज़ाएँ...
दर्दक़ी ज़िद हैं क़ि,
दुनियाक़ो ख़बर हो ज़ाएँ ll

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