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बहुत गहरी हैं,
उसक़ी ख़ामुशी भी ;
मैं अपने क़दक़ो,
छोटा पा रहीं हूँ.......
फ़ातिमा हसन
9557ज़िसे सय्यादने क़ुछ, गुलने क़ुछ,बुलबुलने क़ुछ समझा...चमनमें क़ितनी मानी-ख़ेज़ थी,इक़ ख़ामुशी मिरी.......ज़िगर मुरादाबादी
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क़भी ख़ामोशी बनते हैं,
क़भी आवाज़ बनते हैं,
हर तन्हाईक़े साथी,
मेरे ज़ज़्बात बनते हैं ll
9559हमारी ख़ामोशी हीं,हमारी क़मज़ोरी बन गयी...उन्हें क़ह न पाए दिलक़े ज़ज़्बात और,इस तरहसे उनसे इक़ दूरी बन गयी ll
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ज़ज़्बात क़हते हैं,
ख़ामोशीसे बसर हो ज़ाएँ...
दर्दक़ी ज़िद हैं क़ि,
दुनियाक़ो ख़बर हो ज़ाएँ ll
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