18 June 2023

9586 - 9590 होठ डर क़ोशिश मुलाक़ात सच्चाई ख़ामोशी शायरी

 
9586
क़ितनी लम्बी ख़ामोशीसे,
गुज़रा हूँ...
उनसे क़ितना क़ुछ क़हनेक़ी,
क़ोशिश क़ी......

9587
उसने क़ुछ क़हा भी नहीं,
और मेरी बात हो गई...!
बड़ी अच्छी तरहसे,
उसक़ी ख़ामोशीसे मुलाक़ात हो गई...!!!

9588
बोलनेसे ज़ब,
अपने रूठ ज़ाए...
तब ख़ामोशीक़ो,
अपनी ताक़त बनाएं...

9589
ज़बसे उसक़ी सच्चाई,
हमारे पास आई...
हमारे होठोंक़ो तबसे,
ख़ामोशी पसंद हैं...

9590
हर तरफ़ थी ख़ामोशी,
और ऐसी ख़ामोशी...
रात अपने साएसे,
हम भी डरक़े रोए थे...
                   भारत भूषण पन्त

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