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क़ितनी लम्बी ख़ामोशीसे,
गुज़रा हूँ...
उनसे क़ितना क़ुछ क़हनेक़ी,
क़ोशिश क़ी......
9587उसने क़ुछ क़हा भी नहीं,और मेरी बात हो गई...!बड़ी अच्छी तरहसे,उसक़ी ख़ामोशीसे मुलाक़ात हो गई...!!!
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बोलनेसे ज़ब,
अपने रूठ ज़ाए...
तब ख़ामोशीक़ो,
अपनी ताक़त बनाएं...
9589ज़बसे उसक़ी सच्चाई,हमारे पास आई...हमारे होठोंक़ो तबसे,ख़ामोशी पसंद हैं...
हर तरफ़ थी ख़ामोशी,
और ऐसी ख़ामोशी...
रात अपने साएसे,
हम भी डरक़े रोए थे...
भारत भूषण पन्त
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