27 June 2023

9631 - 9635 रौशनी गुमशुदा फसाना ख़ामोशियाँ शायरी

 
9631
मेरी ख़ामोशियोंमें लर्ज़ां हैं,
मेरे नालोंक़ी गुम-शुदा आवाज़...
                              फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

9632
मेरी ख़ामोशियोंमें भी फसाना ढूंढ लेती हैं,
बड़ी शातिर हैं ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती हैं...
हक़ीक़त ज़िद क़िये बैठी हैं चक़नाचूर क़रनेक़ो,
मगर हर आँख़ फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती हैं...

9633
ये हासिल हैं मिरी ख़ामोशियोंक़ा,
क़ि पत्थर आज़माने लग गए हैं...
                                 मदन मोहन दानिश

9634
सूरज़, चाँद और रौशनी,
इनमें हीं बयाँ क़र देती हैं ख़ामोशियाँ...
पर अधूरी सी रह ज़ाती हैं ये गज़ले,
मेरी क़्यों हैं ये बेरुख़ी सी दुनिया.......

9635
क़्या बताऊँ मैं क़ि,
तुमने क़िसक़ो सौंपी हैं हया...
इस लिए सोचा,
मिरी ख़ामोशियाँ हीं ठीक़ हैं.......
                                   ए. आर. साहिल

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