9531
हम लबोंसे क़ह न पाए,
उनसे हाल-ए-दिल क़भी...
और वो समझे नहीं,
ये ख़ामुशी क़्या चीज़ हैं.......
निदा फ़ाज़ली
9532रात मेरी आँख़ोमें,क़ुछ अज़ीब चेहरे थे...और क़ुछ सदाएँ थीं,ख़ामुशीक़े पैक़रमें.......ख़ुशबीर सिंह शाद
9533
ख़ामुशी छेड़ रहीं हैं,
क़ोई नौहा अपना...
टूटता ज़ाता हैं आवाज़से,
रिश्ता अपना.......
साक़ी फ़ारुक़ी
9534एक़ दिन मेरी ख़ामुशीने मुझे,लफ़्ज़क़ी ओटसे इशारा क़िया llअंज़ुम सलीमी
9535
चटख़क़े टूट गई हैं,
तो बन गई आवाज़...
ज़ो मेरे सीनेमें,
इक़ रोज़ ख़ामुशी हुई थी.......
सालिम सलीम
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