26 June 2023

9626 - 9630 गम ज़हन क़लम रौशनी अहमियत अल्फाज़ ख़ामोशियाँ शायरी

 
9626
ख़ामोशीक़ी भी अपनी एक़,
अलगहीं अहमियत होती हैं l
तितलियाँ अपनी खूबसूरतीक़ा,
बख़ान नहीं क़िया क़रतीं... ll

9627
ख़ामोशियाँ अक़्सर क़लमसे बया नहीं होती,
अँधेरा दिलमें हो तो रौशनीसे आशना नहीं होती,
लाख़ ज़िरह क़र लो अल्फाज़ोमें खुदक़ो ढूंढ़नेक़ी,
ज़ले हुए रिश्तोसे मगर रोशन शमा नहीं होती ll

9628
तेरी ख़ामोशियोंक़ो,
पढ़क़र ख़ामोश हो ज़ाता हूँ l
भला क़र भी क़्या सक़ता हूँ,
गम--आगोश हो ज़ाता हूँ ll

9629
भूल गए हैं लफ्ज़ मेरे,
लबोंक़ा पता ज़ैसे...
या फिर ख़ामोशियोंने,
ज़हनमें पहरा लगा रख़ा हैं...

9630
सबब ख़ामोशियोंक़ा मैं नहीं था,
मिरे घरमें सभी क़म बोलते थे ll
                                     भारत भूषण पन्त

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