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हमारे हालातसे न लगाओ,
अंदाज़ा हमारे वज़ूदक़ा...
हम वो ख़ामोश समंदर हैं,
ज़िसक़े पहलूमें तूफ़ान पलते हैं.......
7697लम्होंक़े अज़ाब सह रहा हूँ...मैं अपने वज़ूदक़ी सज़ा हूँ...lअतहर नफ़ीस
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इतना ना तराशोक़े,
वज़ूदही ना रहे...l
हर पत्थरक़ी क़िस्मतमें,
ख़ुदा बनना नहीं लिख़ा...ll
7699मिरे वज़ूदक़ो,परछाइयोंने तोड़ दिया,मैं इक हिसार था,तन्हाइयोंने तोड़ दिया llफ़ाज़िल ज़मीली
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अब भी आ ज़ाता हैं,
अक़्सर वो ख़्यालोंमें...
आज़ भी वज़ूदमें लग़ती हैं,
हाज़री उस गैर-हाज़िरक़ी...!!!