6091
तुझे ऐ ताइरे-शाखे–नशेमन,
क्या खबर इसकी...
कमी सैयादको भी,
बागबाँ कहना ही पड़ता हैं...
जगन्नाथ आजाद
6092
निशेमन जलनेका,
हम क्यों असर लें...
मिला जब वक्त
फिर,
तामीर कर लेंगे.......
6093
बस ऐ बहार तेरी,
अब जरूरत नहीं रही...
बुलबुलने कर दिया हैं,
निशेमन सुपूर्दे-जाग...
6094
कफसमें खींच ले
जाये मुकद्दर,
या नशेमनमें...
हमें परवाजे-मतलब हैं,
हवा कोई भी
चलती हो.....
सीमाब अकबराबादी
6095
न तीर कमां में हैं,
न सैयाद कमीं में...
गोशेमें कफसके मुझे,
आराम बहुत हैं.......!
मिर्जा गालिब