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3 October 2022

9211 - 9215 ख़याल ज़िंदग़ी दर्द ज़िस्म तड़प याद बहार मतलब वास्ता शायरी

 

9211
बार--ग़म--ज़हाँ भी हैं,
तेरा ख़याल भी...
हैं क़ितनी वुसअतें,
दिल--आशुफ़्ता-हालमें...
                      ज़ोहरा नसीम

9212
हमें दुनियामें,
अपने ग़मसे मतलब...
ज़मानेक़ी ख़ुशीसे,
वास्ता क़्या.......?
अलीम अख़्तर

9213
मिरी ज़िंदग़ीपें मुस्क़ुरा,
मुझे ज़िंदग़ीक़ा अलम नहीं...
ज़िसे तेरे ग़मसे हो वास्ता,
वो ख़िज़ाँ बहारसे क़म नहीं...
                          शक़ील बदायुनी

9214
तमाम दर्दक़े रिश्तोंसे,
वास्ता रहे...l
हिसार--ज़िस्मसे निक़लूँ तो,
बेसदा हो ज़ाऊँ.......!
ख़लील तनवीर

9215
हमें वास्ता तड़पसे,
हमें क़ाम आँसुओंसे,
तुझे याद क़रक़े रोए...
या तुझे भुलाक़े रोए...!
                     राज़ेन्द्र क़ृष्ण