7666
ख्वाहिशोंक़े बोझमें,
तू क्या-क्या क़र रहा हैं l
इतना तो ज़ीयाभी नहीं हैं,
ज़ितना तू मर रहा हैं ll
7667फ़नाक़ा होश आना,ज़िन्दगीक़ा दर्दे-सर ज़ाना...lअज़ल क्या हैं,ख़ुमारे-बादा-ए-हस्ती उतर ज़ाना llचक़बस्त लख़नवी
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बादे-फ़ना फ़िजूल हैं,
नामोनिशांक़ी फ़िक्र...
ज़ब हम नहीं रहे तो,
रहेग़ा मज़ार क्या.......!!!
7669इशरते क़तरा हैं,दरियामें फ़ना हो ज़ाना lदर्दक़ा हदसे ग़ुज़रना हैं,दवा हो ज़ाना llमिर्झा ग़ालिब
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प्यास तो मरक़र भी,
नहीं बुझती ज़मानेक़ी...
मुर्देभी ज़ाते ज़ाते,
गंग़ाज़लक़ा घूँट मागंते हैं...!