6761
इजहारे मोहब्बतका,
यह भी एक तरीखा हैं...
सरेआम जब हाथ मिलाऊ,
तो ऊँगली दबा देना...
6762
राहगीर था इस
सफरका,
तू भी और
मैं भी...
हाथ क्या पकड़ा,
हमसफर बन गए...!
6763
ऐ दिल, जो हो सके तो लुत्फे-गम उठा ले...
तन्हाईयोंमें रो ले, महफिलमें मुस्कुरा ले...
जिस दिन यह हाथ फैले अहले-करमके आगे,
ऐ काश उसके पहले हमको खुदा उठा ले.......
शमीम जयपुरी
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ख़ुदाके
वास्ते गुलको,
न मेरे हाथसे
लो...
मुझे बू आती
हैं इसमें,
किसी बदनकी सी.......
नज़ीर अकबराबादी
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हाथ होता तो,
कबका छुड़ा लेते...
पकड़े बैठे हैं,
वो निगाहोंसे मुझे...!!!