14 November 2020

6761 - 6765 गम तन्हाई इजहार मोहब्बत महफिलसफर निगाह राहगीर हाथोंपर शायरी

 

6761
इजहारे मोहब्बतका,
यह भी एक तरीखा हैं...
सरेआम जब हाथ मिलाऊ,
तो ऊँगली दबा देना...

6762
राहगीर था इस सफरका,
तू भी और मैं भी...
हाथ क्या पकड़ा,
हमसफर बन गए...!

6763
दिल, जो हो सके तो लुत्फे-गम उठा ले...
तन्हाईयोंमें रो ले, महफिलमें मुस्कुरा ले...
जिस दिन यह हाथ फैले अहले-करमके आगे,
काश उसके पहले हमको खुदा उठा ले.......
                                                    शमीम जयपुरी

6764
ख़ुदाके वास्ते गुलको,
न मेरे हाथसे लो...
मुझे बू आती हैं इसमें,
किसी बदनकी सी.......
नज़ीर अकबराबादी

6765
हाथ होता तो,
कबका छुड़ा लेते...
पकड़े बैठे हैं,
वो निगाहोंसे मुझे...!!!

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