10 November 2020

6751 - 6755 दिल मासूम मंजिल महबूब हमसफ़र हिना शायरी

 

6751
चंद मासूमसे पत्तोंका,
लहू हैं फ़ाकिर...
जिसको महबूबके हाथोंकी,
हिना कहते हैं.......

6752
सुर्ख़-रू होता हैं,
इंसाँ ठोकरें खानेके बाद...
रंग लाती हैं हिना,
पत्थरपें पिस जानेके बाद...!

6753
पूछे जो कोई मेरी निशानी,
रंग हिना लिखना;
आऊं तो सुबह,
जाऊ तो मेरा नाम सबा लिखना;
बर्फ पड़े तो,
बर्फपें मेरा नाम दुआ लिखना...!!!
                                           गुलज़ार

6754
मिटा सकी न उन्हें,
रोज़ ओ शबकी बारिश भी...
दिलोंपें नक़्श जो,
रंग-ए-हिनाके रक्खे थे...

6755
उसकी मंजिल भी वही,
रास्ते भी वही...
उसने बदला तो बस,
हमसफ़र बदला.......

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