हाथका मज़हब,
नहीं देखते परिंदे...
जो भी दाना दे,
खुशीसे खा लेते हैं...!
6777
मुठ्ठियोंमें क़ैद हैं
जो खुशियाँ...
वो बांट दो
यारो...!
ये हथेलियाँ तो इक
दिन...
वैसे भी खुल
ही जानी हैं.......!
6778
अगर तुमसे कोई पूछे,
बताओ ज़िन्दगी क्या हैं...
हथेलीपर जरासी राख़ रखना,
और उड़ा देना.......
6779
बरसता भीगता मौसम,
धुआँ धुआँ होगा;
पिघलती शम्मोपें,
दिलका मेरे गुमा
होगा;
हथेलियोंकी
हिना,
याद कुछ दिलायेगी ll
6780
न हाथ थाम सके और,
न पकड़ सके दामन...
बहुतही क़रीबसे गुज़रकर,
बिछड़ गया कोई.......
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