5 November 2020

6736 - 6740 खामोश प्यार फ़ना गम ज़ुल्फ हिना मेहँदी शायरी

 

6736
ज़ुल्फ बिखेरे उसकी मोहब्बत,
मुझे नुमाइशसी लगती हैं...
उसके हाथोंपें लगी मेहँदी,
मुझे पराईसी लगती हैं.......

6737
रातभर बेचारी मेहँदी,
पिसती हैं पैरोंतले...
क्या करू कैसे कहूँ,
रात कब कैसे ढले...
गुलजा़र

6738
मुझे भी फ़ना होना था,
तेरे हाथोंकी मेहँदीकी तरह...
ये गम नहीं मिट जानेका,
तू रंग देख निखरा हूँ किस तरह...

6739
तेरे हाथोंकी मेहँदीमें,
मेरे प्यारका भी रंग हैं...
तू किसी औरका हो जा,
पर तेरा प्यार मेरे संग हैं...

6740
शादीके सात फेरोंके वक्त,
खामोश खड़ा एक शख्स था...
दुल्हनकी मेहँदीमें आज भी,
बस उसका ही अक्स था.......

No comments:

Post a Comment