22 November 2020

6791 - 6795 हुस्न मसर्रत रिश्ता ख़याल जीस्त गम अश्क दामन शायरी

 

6791
मुझसे हर बार,
मसर्रतने छुड़ाया दामन...
मुझको सौ बार दिया,
गमने सहारा.......

6792
दामन किसीका हाथसे,
जाता रहा मगर;
इक रिश्ता-ए-ख़याल हैं,
जो टूटता नहीं...

6793
बरसात थम चुकी हैं,
मगर हर शजरके पास...
इतना तो हैं कि,
आपका दामन भिगो सके...
                   अहसन यूसुफ़ ज़ई

6794
हुस्नका दामन,
फिरभी ख़ाली l
इश्क़ने लाखों,
अश्क बिखेरे ll
सूफ़ी तबस्सुम

6795
दामन--जीस्तमें,
अब कुछभी नहीं हैं बाकी...
मौत भी आयी तो,
यकीनन उसे धोखा होगा...!

No comments:

Post a Comment