6731
पीपलके पत्तोंजैसा मत बनो,
जो वक्त आनेपर सूखकर गिर जाते हैं;
बनना हैं तो मेहँदीके पत्तोंजैसा बनो,
जो पिसकर भी दूसरोंकी जिंदगीमें रँग भर देते हैं ll
6732
पूरी मेहंदी भी,
लगानी नहीं आती
अब तक...
क्यूँ कर आया
तुझे,
ग़ैरोंसे
लगाना दिलका...
दाग़ देहलवी
6733
मेहँदीके पत्ते जैसा,
हो जाना चाहता हूँ...
मिटकर भी खुशियाँ,
दे जाना चाहता हूँ.......!
6734
वक्तके साथ मेहंदीका,
रंग उतर जाता
हैं...
पर चाहतके रंग अपने
दिलसे,
कैसे उतारोगी.......
6735
कुछ रिश्तें मेहँदीके,
रंगकी तरह होते हैं...
शुरुवातमें चटख,
बादमें फीके पड़
जाते हैं...
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