13 November 2020

6756 - 6760 धोख़ा फ़ासला नज़र अमानत तलाश हाथ हाथोंपर शायरी

 

6756
फ़ासला नज़रोंका,
धोख़ा भी तो हो सकता हैं...
वो मिले या मिले,
हाथ बढ़ाकर देखो.......
                          निदा फ़ाज़ली

6757
कोई हाथ भी न मिलाएगा,
जो गले मिलोगे तपाकसे;
ये नए मिज़ाजका शहर हैं,
ज़रा फ़ासलेसे मिला करो...
बशीर बद्र

6758
मैं जिसके हाथमें,
एक फूल देकर आया था...
उसीके हाथका पत्थर,
मेरी तलाशमें हैं.......
                    कृष्ण बिहारी नूर

6759
क्यूँ वस्लकी शब,
हाथ लगाने नहीं देते...
माशूक़ हो या,
कोई अमानत हो किसीकी...
दाग़ देहलवी

6760
अंगड़ाई भी वो,
लेने पाए उठाके हाथ...
देखा जो मुझको,
छोड़ दिए मुस्कुराके हाथ...!!!
                       निज़ाम रामपुरी

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