6756
फ़ासला नज़रोंका,
धोख़ा भी तो हो सकता हैं...
वो मिले या न मिले,
हाथ बढ़ाकर देखो.......
निदा फ़ाज़ली
6757
कोई हाथ भी
न मिलाएगा,
जो गले मिलोगे
तपाकसे;
ये नए मिज़ाजका
शहर हैं,
ज़रा फ़ासलेसे मिला करो...
बशीर बद्र
6758
मैं जिसके हाथमें,
एक फूल देकर आया था...
उसीके हाथका पत्थर,
मेरी तलाशमें हैं.......
कृष्ण बिहारी नूर
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क्यूँ वस्लकी शब,
हाथ लगाने नहीं देते...
माशूक़ हो या,
कोई अमानत हो किसीकी...
दाग़ देहलवी
अंगड़ाई भी वो,
लेने न पाए उठाके हाथ...
देखा जो मुझको,
छोड़ दिए मुस्कुराके हाथ...!!!
निज़ाम रामपुरी
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