6741
मेरे सुर्ख़ लहूसे,
चमकी कितने हाथोंमें मेहँदी...!
शहरमें जिस दिन क़त्ल हुआ,
मैं ईद मनाई लोगोंने.......!
ज़फ़र
6742
इश्क़के मौतका मैंने,
मातम मनाया हैं;
उन्होंने
अपनी हाथोंमें,
आज मेहँदी लगाया हैं...
6743
तेरी मेहँदीमें मिरे ख़ूँकी,
महक आ जाए...
फिर तो ये शहर मिरी,
जान तलक आ जाए...
राशिद अमीन
6744
मेहँदीके
धोके मत रह
ज़ालिम,
निगाह कर तू l
ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पासे,
तेरे लिपट रहा
हैं ll
मुसहफ़ी
ग़ुलाम हमदानी
6745
एक पलके लिए,
बनाने वाला भी रोया होगा;
किसीका अरमान जब यूँ,
मौतकी नींद सोया होगा;
हाँथोंकी मेहँदी छूटी भी नहीं,
कि चूड़ियाँ तोड़नी पड़ी;
कौन हैं जो ये लम्हा,
देखकर न रोया
होगा ll
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