7 November 2020

6741 - 6745 इश्क़ सुर्ख़ पलके महक ज़ालिम हिना मेहँदी शायरी

 

6741
मेरे सुर्ख़ लहूसे,
चमकी कितने हाथोंमें मेहँदी...!
शहरमें जिस दिन क़त्ल हुआ,
मैं ईद मनाई लोगोंने.......!
                                      ज़फ़र

6742
इश्क़के मौतका मैंने,
मातम मनाया हैं;
उन्होंने अपनी हाथोंमें,
आज मेहँदी लगाया हैं...

6743
तेरी मेहँदीमें मिरे ख़ूँकी,
महक जाए...
फिर तो ये शहर मिरी,
जान तलक जाए...
                    राशिद अमीन

6744
मेहँदीके धोके मत रह ज़ालिम,
निगाह कर तू l
ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पासे,
तेरे लिपट रहा हैं ll
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6745
एक पलके लिए,
बनाने वाला भी रोया होगा;
किसीका अरमान जब यूँ,
मौतकी नींद सोया होगा;
हाँथोंकी मेहँदी छूटी भी नहीं,
कि चूड़ियाँ तोड़नी पड़ी;
कौन हैं जो ये लम्हा,
देखकर रोया होगा ll

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