20 November 2020

6781 - 6785 दिल पनाह तलब हुस्न बहार दामन शायरी

 

6781
तेरी पनाहकी तलब,
यूँ ही बेसबब तो नहीं...
तेरे दामनसे बेहतर,
कोई जमींभी तो नहीं मिलती...

6782
पहलू-ए-गुलमें,
खार भी हैं कुछ छुपे हुए...
हुस्ने-बहार देख तो,
दामन बचाके देख.......
दिल शाहजहाँपुरी

6783
फूल चुनना भी अबस,
सैरे-बहारां भी अबस...
दिलका दामन ही जो,           
कांटोंसे बचाया गया...!
                 मुईन अहसन जज्बी

6784
मैं जो कांटा हूँ तो,
चल मुझसे बचाकर दामन...
मैं हूँ अगर फूल तो,
जूड़ेमें सजाले मुझको.......

6785
बहला रहे हैं अपनी,
तबिअत खिजाँ-नसीब...
दामन पै खींच-खींचकर,
नक्शा बहारका.......
                 दिल शाहजहाँपुरी

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