9 November 2020

6746 - 6750 वफ़ा सितम ख़ुशबू बोसा नज़र हिना शायरी

 

6746
मैं वो साग़र नहीं,
आए कभी लब तक जो रियाज़...!
किसको मिलता हैं,
तिरे रंग--हिनाका बोसा.......!!!

6747
काँचके पार तिरे,
हाथ नज़र आते हैं...
काश ख़ुशबूकी तरह,
रंग हिनाका होता.......
गुलज़ार

6748
शामिल हैं मेरा ख़ून--जिगर,
तेरी हिनामें...
ये कम हो तो अब,
ख़ून--वफ़ा साथ लिए जा...

6749
इक सुब्ह थी जो,
शाममें तब्दील हो गई;
इक रंग हैं जो,
रंग-ए-हिना हो नहीं रहा...
काशिफ़ हुसैन

6750
ये भी नया सितम हैं,
हिना तो लगाए ग़ैर...
और दाद उसकी चाहें,
वो मुझको दिखाके हाथ...
                     निज़ाम रामपुरी

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