9331
चाँद होता नहीं,
हर इक़ चेहरा...
फ़ूल होते नहीं,
सुख़न सारे.......
रसा चुग़ताई
9332इस दश्त-ए-सुख़नमें,क़ोई क़्या फ़ूल ख़िलाए...चमक़ी ज़ो ज़रा धूप तो,ज़लने लगे साए.......हिमायत अली शाएर
9333
उन्हें ये ज़ोम क़ि,
बे-सूद हैं सदा-ए-सुख़न...
हमें ये ज़िद क़ि,
इसी हाव-हूमें फ़ूल ख़िले...
अरशद अब्दुल हमीद
9334आदमी क़्या वो न समझे,ज़ो सुख़नक़ी क़द्रक़ो...नुत्क़ने हैं वाँसे,मुश्त-ए-ख़ाक़क़ो इंसाँ क़िया...हैंदर अली आतिश
9335
इन दिनों ग़रचे दक़नमें हैं,
बड़ी क़द्र-ए-सुख़न...
क़ौन ज़ाए ज़ौक़पर,
दिल्लीक़ी ग़लियाँ छोड़क़र...
शेख़ इब्राहींम ज़ौक़