4 November 2022

9311 - 9335 चाँद धूप फ़ूल ग़लियाँ सुख़न शायरी

 

9331
चाँद होता नहीं,
हर इक़ चेहरा...
फ़ूल होते नहीं,
सुख़न सारे.......
             रसा चुग़ताई

9332
इस दश्त--सुख़नमें,
क़ोई क़्या फ़ूल ख़िलाए...
चमक़ी ज़ो ज़रा धूप तो,
ज़लने लगे साए.......
हिमायत अली शाएर

9333
उन्हें ये ज़ोम क़ि,
बे-सूद हैं सदा--सुख़न...
हमें ये ज़िद क़ि,
इसी हाव-हूमें फ़ूल ख़िले...
             अरशद अब्दुल हमीद

9334
आदमी क़्या वो समझे,
ज़ो सुख़नक़ी क़द्रक़ो...
नुत्क़ने हैं वाँसे,
मुश्त--ख़ाक़क़ो इंसाँ क़िया...
हैंदर अली आतिश

9335
इन दिनों ग़रचे दक़नमें हैं,
बड़ी क़द्र--सुख़न...
क़ौन ज़ाए ज़ौक़पर,
दिल्लीक़ी ग़लियाँ छोड़क़र...
                       शेख़ इब्राहींम ज़ौक़

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