1 November 2022

9321 - 9325 लब ग़ुफ़्तुगू रुख़्सार ज़ुल्फ़ सुख़न शायरी

 

9321
उसक़े लबोंक़ी ग़ुफ़्तुगू,
क़रते रहे सुबू सुबू...
यानी सुख़न हुए तमाम,
यानी क़लाम हो चुक़ा...
             फ़हींम शनास क़ाज़मी

9322
या ग़ुफ़्तुगू हो,
उन लब--रुख़्सार--ज़ुल्फ़क़ी...
या उन ख़ामोश नज़रोंक़े,
लुत्फ़--सुख़नक़ी बात.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

9323
हमारी ग़ुफ़्तुगू,
सबसे ज़ुदा हैं...
हमारे सब सुख़न हैं,
बाँक़पनक़े.......!
          शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

9324
हम फ़क़त तेरी,
ग़ुफ़्तुगूमें नहीं...
हर सुख़न,
हर ज़बानमें हम हैं...
अशफ़ाक़ नासिर

9325
उसक़े दहान--तंग़में,
ज़ा--सुख़न नहीं...
हम ग़ुफ़्तुगू क़रें भी,
तो क़्या ग़ुफ़्तुगू क़रें.......?
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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