9321
उसक़े लबोंक़ी ग़ुफ़्तुगू,
क़रते रहे सुबू सुबू...
यानी सुख़न हुए तमाम,
यानी क़लाम हो चुक़ा...
फ़हींम शनास क़ाज़मी
9322या ग़ुफ़्तुगू हो,उन लब-ओ-रुख़्सार-ओ-ज़ुल्फ़क़ी...या उन ख़ामोश नज़रोंक़े,लुत्फ़-ए-सुख़नक़ी बात.......ज़यकृष्ण चौधरी हबीब
9323
हमारी ग़ुफ़्तुगू,
सबसे ज़ुदा हैं...
हमारे सब सुख़न हैं,
बाँक़पनक़े.......!
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
9324हम फ़क़त तेरी,ग़ुफ़्तुगूमें नहीं...हर सुख़न,हर ज़बानमें हम हैं...अशफ़ाक़ नासिर
9325
उसक़े दहान-ए-तंग़में,
ज़ा-ए-सुख़न नहीं...
हम ग़ुफ़्तुगू क़रें भी,
तो क़्या ग़ुफ़्तुगू क़रें.......?
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
No comments:
Post a Comment