9341
सुख़न-साज़ीमें लाज़िम हैं,
क़माल-ए-इल्म-ओ-फ़न होना...
महज़ तुक़-बंदियोंसे,
क़ोई शाएर हो नहीं सक़ता...
ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
9342मेरे सुख़नक़ी दाद भी,उसक़ो हीं दीज़िए...वो ज़िसक़ी आरज़ू मुझे,शाएर बना ग़ई.......सहबा अख़्तर
9343
सितम तो ये हैं क़ि,
ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं l
वो एक़ शख़्स क़ि,
शाएर बना ग़या मुझक़ो...ll
अहमद फ़राज़
9344हम हसीन ग़ज़लोंसे,पेट भर नहीं सक़ते...दौलत-ए-सुख़न लेक़र,बे-फ़राग़ हैं यारो.......फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
9345
हमसे आबाद हैं ये,
शेर-ओ-सुख़नक़ी महफ़िल...
हम तो मर ज़ाएँगे,
लफ़्ज़ोंसे क़िनारा क़रक़े.......
हाशिम रज़ा ज़लालपुरी
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