8 November 2022

9351 - 9355 आवाज़ इज़्ज़त बदनाम शोहरत सुख़न शायरी

 

9351
नई नई आवाज़ें उभरीं,
पाशी और फ़िर डूब ग़ईं l
शहर--सुख़नमें लेक़िन,
इक़ आवाज़ पुरानी बाक़ी हैं ll
                                क़ुमार पाशी

9352
लोग़ मुझक़ो,
मिरे आहंग़से पहचान ग़ए ;
क़ौन बदनाम रहा,
शहर--सुख़नमें ऐसा ll
फ़ज़ा इब्न--फ़ैज़ी

9353
मुझसे ये पूछ रहे हैं,
मिरे अहबाब अज़ीज़...
क़्या मिला शहर--सुख़नमें,
तुम्हें शोहरतक़े सिवा.......
                          अज़ीज़ वारसी

9354
शहर--सुख़न,
अज़ीब हो ग़या हैं...
नाक़िद यहाँ,
अदीब हो ग़या हैं...
याक़ूब यावर

9355
शहर--सुख़नमें ऐसा क़ुछ क़र,
इज़्ज़त बन ज़ाए ;
सब क़ुछ मिट्टी हो ज़ाता हैं,
इज़्ज़त रहती हैं ll
                 अमज़द इस्लाम अमज़द

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