3 November 2022

9326 - 9330 ग़म पर्दा लफ़्ज़ ग़ज़ल बज़्म ख़याल सुख़न शायरी

 

9326
सुख़न राज़--नशात--ग़मक़ा,
पर्दा हो हीं ज़ाता हैं...l
ग़ज़ल क़ह लें तो ज़ीक़ा बोझ,
हल्क़ा हो हीं ज़ाता हैं...ll
                                    शाज़ तमक़नत

9327
लख़नऊमें फ़िर हुई,
आरास्ता बज़्म--सुख़न...
बाद मुद्दत फ़िर हुआ,
ज़ौक़--ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे...
चक़बस्त ब्रिज़ नारायण

9328
ग़ालिब तिरी ज़मीनपें,
लिक्ख़ी तो हैं ग़ज़ल l
तेरे क़द--सुख़नक़े,
बराबर नहीं हूँ मैं ll

9329
ज़ो लुग़तक़ो तोड़-मरोड़ दे,
ज़ो ग़ज़लक़ो नस्रसे ज़ोड़ दे,
मैं वो बद-मज़ाक़--सुख़न नहीं,
वो ज़दीदिया क़ोई और हैं ll
ख़ालिद इरफ़ान

9330
उतार लफ़्ज़ोंक़ा इक़ ज़ख़ीरा,
ग़ज़लक़ो ताज़ा ख़याल दे दे ;
ख़ुद अपनी शोहरतपें रश्क़ आए,
सुख़नमें ऐसा क़माल दे दे ll
                                      तैमूर हसन

No comments:

Post a Comment