16 November 2022

9386 - 9390 निग़ाह ज़िंदग़ी सवाल लफ़्ज़ क़हानी सुख़न शायरी

 

9386
उसने मिरी निग़ाहक़े,
सारे सुख़न समझ लिए...
फ़िर भी मिरी निग़ाहमें,
एक़ सवाल हैं नया.......
                     अतहर नफ़ीस

9387
आँख़से आँख़ मिलाना तो,
सुख़न मत क़रना l
टोक़ देनेसे क़हानीक़ा,
मज़ा ज़ाता हैं...ll
मोहसिन असरार

9388
लफ़्ज़क़ी बुहतात इतनी,
नक़्द फ़नमें ग़ई...
मस्ख़ होक़र सूरत--मअनी,
सुख़नमें ग़ई.......
                               क़ाविश बद्री

9389
सुख़न-सराई क़ोई,
सहल क़ाम थोड़ी हैं...
ये लोग़ क़िस लिए,
ज़ंज़ालमें पड़े हुए हैं.......
दिलावर अली आज़र

9390
सुख़नमें सहल नहीं,
ज़ाँ निक़ालक़र रख़ना...
ये ज़िंदग़ी हैं हमारी,
सँभालक़र रख़ना.......
                 उबैदुल्लाह अलीम

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