5 November 2022

9336 - 9340 हर्फ़ इश्क़ बज़्म आदाब अख़बार सुख़न शायरी

 

9336
क़ुछ हर्फ़ सुख़न,
पहले तो अख़बारमें आया...
फ़िर इश्क़ मिरा,
क़ूचा बाज़ारमें आया...
                         इरफ़ान सिद्दीक़ी

9337
या उन्हें आती नहीं,
बज़्म--सुख़न-आराई...
या हमें बज़्मक़े,
आदाब नहीं आते हैं...
रम्ज़ी असीम

9338
दस बारा ग़ज़लियात,
ज़ो रख़ता हैं ज़ेबमें...
बज़्म--सुख़नमें हैं,
वो निशानी वबालक़ी.......
                   अज़ीज़ फ़ैसल

9339
क़िसने बेचा नहीं,
सुख़न अपना...
क़ौन बाज़ारतक़,
नहीं पहुँचा.......
अज़य सहाब

9340
सौग़ंद हैं हसरत मुझे,
एज़ाज़--सुख़नक़ी...
ये सेहर हैं ज़ादू हैं,
अशआर हैं तेरे.......
               हसरत अज़ीमाबादी

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